भारतीय शेयर बाजार में हाल ही में एक ऐसा विवाद सामने आया है, जिसने निवेशकों और रेगुलेटर्स दोनों को सोचने पर मजबूर कर दिया है। यह विवाद है Jane Street नामक वैश्विक ट्रेडिंग फर्म और भारतीय पूंजी बाजार नियामक SEBI (भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड) के बीच। यह मामला न केवल जुर्माने और ट्रेडिंग पैटर्न तक सीमित है, बल्कि यह भारतीय नियामक व्यवस्था की पारदर्शिता और विश्वसनीयता पर भी गंभीर सवाल उठाता है।
पृष्ठभूमि
दिसंबर 2024 में SEBI के Internal Surveillance Department (ISD) ने नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) द्वारा जमा कराए गए 54 डेटा सेट की समीक्षा की।
-
इनमें से 48 डेटा सेट में Jane Street को पूरी तरह निर्दोष पाया गया।
-
शेष 6 डेटा सेट में भी केवल मामूली लाभ दर्ज किया गया।
इन निष्कर्षों के आधार पर ISD ने केस बंद करने की सिफारिश की और उस समय की SEBI चेयरपर्सन माधबी पुरी बुच ने इस सिफारिश को स्वीकार करते हुए फाइल बंद कर दी।
नया मोड़
कुछ समय बाद, आश्चर्यजनक रूप से वही केस फिर से खोला गया। इस बार उन्हीं डेटा सेट के आधार पर SEBI ने “Extended Marking the Close Theory” तैयार की, यानी आरोप यह कि Jane Street ने ट्रेडिंग के अंतिम क्षणों में शेयर की कीमतों को प्रभावित किया।
नए SEBI चेयरमैन तुहिन कांत पांडे ने इस आधार पर Jane Street पर ₹4,843 करोड़ रुपये का भारी जुर्माना ठोक दिया।
Jane Street की प्रतिक्रिया
Jane Street ने यह जुर्माना राशि तो Escrow Account में जमा करा दी, लेकिन उसने तुरंत अपील दायर नहीं की। बाद में उसने Securities Appellate Tribunal (SAT) का रुख किया। अपनी अपील में कंपनी ने तीन मुख्य मांगें रखीं—
-
SEBI का पूरा डेटा और उसका विश्लेषण उपलब्ध कराया जाए।
-
NSE और SEBI के बीच हुई सभी ई-मेल बातचीत साझा की जाए।
-
वह मूल शिकायत सामने लाई जाए, जिसके आधार पर उन्हें आरोपी बनाया गया।
कंपनी का कहना है कि यदि पहले ISD ने उसे क्लीन चिट दी थी, तो बाद में उसी डेटा को manipulative कहने का आधार क्या है? आखिर फाइल दोबारा क्यों और किस परिस्थिति में खोली गई?
बड़े सवाल
यह मामला कई अहम सवाल खड़ा करता है:
-
क्या एक ही डेटा पर दो अलग-अलग चेयरपर्सन के समय अलग-अलग निर्णय होना सामान्य है?
-
क्या भारतीय रेगुलेटरी सिस्टम में पारदर्शिता की कमी है?
-
इस विवाद का असर विदेशी निवेशकों के भरोसे पर कितना पड़ेगा?
निष्कर्ष
Jane Street और SEBI का यह विवाद महज़ एक कंपनी और नियामक संस्था के बीच का टकराव नहीं है। यह भारतीय बाजार की विश्वसनीयता और पारदर्शिता की परीक्षा है। यदि SAT का फैसला Jane Street के पक्ष में आता है, तो SEBI की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठेंगे। वहीं अगर SEBI सही साबित होता है, तो यह विदेशी निवेशकों के लिए बड़ा सबक होगा।
कुल मिलाकर, आम निवेशक की नजर से देखें तो यही लगता है—
“गोलमाल है भाई, सब गोलमाल है।”