आजकल अगर आप सोशल मीडिया पर स्क्रोल करें तो हर जगह स्टॉक मार्केट के “गुरु” नज़र आते हैं। कोई कहता है रोज़ाना मुनाफ़ा मिलेगा, कोई बताता है बिना रिस्क पैसा डबल होगा। इसी बीच टीवी चैनलों पर “एक्सपर्ट” स्टॉक टिप्स देते हैं और ढेरों नए ट्रेडिंग ऐप्स निवेशकों को लुभाते हैं। बड़ी समस्या यह है कि इनमें से बहुत कुछ झूठ, आधा-अधूरा या धोखाधड़ी है। और इन सबसे सबसे ज़्यादा नुकसान होता है आम रिटेल निवेशकों को। भारतीय बाजार नियामक सेबी (SEBI) लगातार सख़्ती कर रहा है, लेकिन स्कैम करने वाले और टेक्नॉलॉजी दोनों तेज़ी से बदल रहे हैं।
चलिए समझते हैं तीन सबसे बड़ी चुनौतियाँ।
- फ़र्ज़ी स्टॉक मार्केट एजुकेटर्स
डिमैट और ट्रेडिंग अकाउंट्स की संख्या बढ़ते ही “स्टॉक एजुकेशन” एक बिज़नेस बन चुका है। ये एजुकेटर्स चकाचौंध वाले विज्ञापन चलाते हैं और भोले-भाले निवेशकों को फँसाते हैं। इनके दावे कुछ ऐसे होते हैं:
- बिना रिस्क के ट्रेडिंग
- रोज़ाना इन्ट्राडे प्रॉफ़िट
- “आज खरीदो, कल बेचो” स्ट्रैटेजी
- गारंटीड मंथली इनकम
सच्चाई यह है कि ये दावे अक्सर भ्रामक होते हैं। कई बार ये क्लासेज़ शो जैसी लगती हैं। उदाहरण के लिए, अवधूत साठे का “टाइटैनिक पोज़” छात्रों के साथ सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था। मज़ाक लग सकता है, लेकिन असर गंभीर है—कई निवेशक अपनी मेहनत की कमाई गँवा बैठते हैं।
तो फिर असली एजुकेशन कौन देगा? NSE और BSE की आधिकारिक अकादमियाँ (जैसे NSE Academy, NCFM) कोर्स तो चलाती हैं, लेकिन वे इतने उबाऊ और पुराने ढंग के हैं कि सीखने वालों का मन ही नहीं लगता। दूसरी ओर, प्राइवेट एजुकेटर्स आधुनिक सामग्री, चमकदार वीडियो और लाइव क्लास के ज़रिए छात्रों को आकर्षित करते हैं। कई बार तो इनकी “ट्रेनिंग” में बताई गई स्टॉक्स अचानक सर्किट तक लग जाती हैं क्योंकि छात्र एकसाथ खरीदने लगते हैं।
यानी ज़रूरत है कि स्टॉक एक्सचेंज और रेग्युलेटर मिलकर आधुनिक और भरोसेमंद शिक्षा मंच तैयार करें।
- टीवी एनालिस्ट और उनका “डिस्क्लेमर गेम”
बिज़नेस चैनल्स पर रोज़ ढेरों स्टॉक टिप्स सुनाई देती हैं। स्क्रीन पर एक छोटा-सा डिस्क्लेमर आता है, लेकिन हकीकत अक्सर अलग होती है:
- कई एनालिस्ट खुद ट्रेड ही नहीं करते।
- कुछ पहले अपने क्लाइंट्स को टिप दे चुके होते हैं और बाद में टीवी पर बताते हैं।
- कई बार प्रमोटर्स या ब्रोकिंग हाउस से “रिवॉर्ड” लेकर स्टॉक्स की सिफ़ारिश करते हैं।
ब्रोकरेज फर्मों की “रिसर्च रिपोर्ट्स” भी हमेशा भरोसेमंद नहीं होतीं। ये एक बड़े नेटवर्क का हिस्सा होती हैं, जिसमें कंसल्टेंट, ब्रोकर, टीवी एंकर और एनालिस्ट शामिल रहते हैं।
हाल ही में सेबी ने संजीव भसीन और अवधूत साठे जैसे नामों पर कार्रवाई की है। लेकिन सच यह है कि मामला कुछ व्यक्तियों तक सीमित नहीं है—पूरे सिस्टम में सफ़ाई की ज़रूरत है।
- नकली और क्लोन ट्रेडिंग ऐप्स
सबसे बड़ा खतरा नकली ट्रेडिंग ऐप्स से है। ये दिखने में बिल्कुल असली ऐप जैसे लगते हैं। निवेशक इनमें शेयर “खरीदते-बेचते” हैं, लेकिन असलियत यह है कि सब नकली होता है— डिमैट अकाउंट भी। जब पैसा निकालने की कोशिश की जाती है, तब धोखाधड़ी का पता चलता है।
यहाँ तक कि कई असली ट्रेडिंग ऐप्स भी पूरी तरह सुरक्षित नहीं हैं। ज़्यादातर TradingView के बैकएंड पर बने हैं, इसलिए सबके टारगेट और स्टॉप-लॉस एक जैसे निकलते हैं। नतीजा यह होता है कि अचानक शेयरों में तेज़ उछाल या गिरावट देखने को मिलती है।
फिनटेक सेक्टर तेजी से आगे बढ़ रहा है, और इन्हें नियंत्रित करना सेबी के लिए और भी मुश्किल बनता जा रहा है।
आगे क्या होना चाहिए?
इस स्थिति से निपटने के लिए तीन कदम ज़रूरी हैं:
- बेहतर शिक्षा – NSE, BSE और SEBI को आधुनिक और उपयोगी शिक्षा प्लेटफ़ॉर्म बनाने चाहिए।
- सख़्त निगरानी – टीवी एंकर और एनालिस्ट पर रियल-टाइम तकनीकी निगरानी होनी चाहिए।
- सुपर ऐप – एक सुरक्षित और भरोसेमंद ऐप, जिसमें सभी ट्रेडिंग सुविधाएँ एक जगह मिलें।
स्टॉक मार्केट खुद ही जोखिम भरा है। अगर इसमें फ़र्ज़ी गुरु, टीवी एनालिस्ट और नकली ऐप्स जुड़ जाएँ तो जोखिम कई गुना बढ़ जाता है। सेबी ने कुछ सख़्त कदम उठाए हैं, लेकिन असली समाधान तभी मिलेगा जब शिक्षा, टेक्नॉलॉजी और नियम—तीनों मोर्चों पर एकसाथ काम किया जाए।
और हाँ, याद रखिए: अगर कोई कहे कि “स्टॉक मार्केट में गारंटीड प्रॉफ़िट मिलेगा,” तो वह दावा झूठा है।
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